By K S VIJAY RAGHAVAN

मैंने भगवान को देखा, ईश्वर को महसूस किया
मेरा जन्म १ दिसंबर १९५८ को हुआ था
ज़िंदगी के ६६ वें साल में कदम रख चुका था ।
छोटी उम्र में भगवान के दर्शन कुछ इस तरह हुए
हाथ जोड़ के खड़े होने को कहा तो खड़े हो गए ।
जैसे जैसे उम्र बढ़ी, स्कूल और कॉलेज जाने लगे
परीक्षा देने से पहले भगवान को प्रणाम करने लगे ।
चलते चलते भगवान पर विश्वास बढ़ता गया
शिरडी के साईं पर अपने आप को समर्पण कर दिया ।
दुख में उन्हें याद करते और सुख में उन्हें धन्यवाद देते
लेकिन सच्चाई तो यही है कि भगवान कभी नहीं दिखते ।
जनवरी २०२३ को बेटी के गर्भवती होने की सूचना मिली
सितंबर २०२३ में अमेरिका जाने की तैयारी शुरू कर ली ।
१० सितंबर २०२३ को मेरे नाती “रिशी”का जन्म हुआ
उसकी पहली तस्वीर देख मन गद गद हो उठा ।
जन्म के दो घंटे बाद बच्चे को माँ के पास लाते हैं
बच्चा और माँ परस्पर एक दूसरे का स्पर्श करते हैं ।
बच्चा एक बार के स्पर्श से असंतुष्ट लगता है
वह अपने गाल फिर से माँ के होंटो के तरफ़ ले जाता है ।
इन पंक्तियों पर जरा ख़ास ध्यान दीजिएगा
“दो घंटे के जन्मे बच्चे को अपनी माँ के स्पर्श का अहसास,
साक्षात ईश्वर के स्वरूप का ही खेल हो सकता है ।”
तीन दिन बाद हमारा नाती का गृह प्रवेश होता है
उस पल की ख़ुशी को शब्दों में बयान करना मुश्किल है ।
ऐसा लगा जैसे स्वयं भगवान कृष्ण हमारे घर पधारे हों
ऐसा लगा जैसे पूरा ब्रह्मांड अपने साथ लाया हो ।
वह सोता तो उसके चेहरे को देखते रहने का मन करता था
वह उठता तो उसके साथ खेलते रहने का मन करता था ।
वह रोता तो मन उदास और दिल बेचैन हो उठता था
वह सोते हुए मुस्कुराता तो दिल बाग बाग हो जाता था ।
पहले महीने ,उसकी दिन चर्या मासूमियत से भरी होती
हर दो घंटे माँ का दूध पीता और दिन में बीस घंटे सोता ।
दूसरे महीने अपनी आँखों से हम सबका मन जीता
बड़ी बड़ी आँखें खुली रख हमें एक टक देखता रहता
भगवान के दिव्य दर्शन के होने का अहसास होता ।
उसकी सबसे प्रिय वस्तु भगवान श्री गणेश का खिलौना था
भगवान के साथ खेलते हुए शरारती आँखों से हमें देखता ।
ऐसा लगता जैसे श्री गणेश के साथ पुराना रिश्ता था
भगवान के साथ खेलता हुआ देखना बड़ा मधुर लगता था ।
माता पिता जब नहलाते,वह बड़ा ख़ुश लगता था
यह दृश्य भगवान बालाजी के अभिषेक से कम नहीं था ।
१० फ़रवरी २०२४ को वह पाँच महीने का हो गया था उसकी मुस्कान से लगता ,संसार में कुछ ग़लत नहीं होता ।
२७ फ़रवरी २०२४ को याद कर,ज़िंदगी थम सी जाती है
उस दिन प्यारे से पोते को छोड़ देश वापस लौटना था ।
आँखों से आँसू झलकने लगते, अकेले में रो भी पड़ता था
ज़िंदगी का दस्तूर है सबको अपने घर लौटना ही पड़ता है।
किसी ने सही कहा है दुनिया के सारे सुख ऐक तरफ़
पोते या पोती के साथ खेलना एक तरफ़ ।
हम सब भारतवासियों के लिए श्री राम अयोध्या में बसते हैं
हमारे लिए भगवान श्री राम हमारे घर में भी बसते हैं।
“मैंने भगवान को देखा है ईश्वर को महसूस किया है “