By Kishor Kumar
सरकारी स्कूल के बच्चे (शीर्षक)
सरकारी स्कूलों के बच्चे, क्यों मुझको इतना भाते है,
हल्की सी मुस्कुराहट लेकर दिल में ये बस जाते है ।
कभी कभी हम डाँटे तो रोने लग जाते है,
प्यार से देखे तो गले लग जाते है।
सरकारी स्कूलों के बच्चे, क्यों मुझको इतना भाते है।
जब भी पास आते है शीश को झुकाते है, विनम्रता का पाठ सबको सीखा जाते है।
सच झूठ ना समझ पाते है फिर भी समझदार कहलाते है
खेल खेल में ही ये सबकुछ सीख जाते है,
सरकारी स्कूलों के बच्चे, क्यों मुझको इतना भाते है।
चिड़ियो सा चहचहाते है शोर भी मचाते है, कभी कभी तो ये शेर सी दहाड़ भी लगाते है ।
आसमान को छूना चाहे, अंतरिक्ष में जाना चाहे,
देख के इनकी प्रतिभा को चाँद तारे भी शरमा जाये ।
अ,आ, इ, ई सीखते सीखते कब ये बच्चे बड़े हो जाते है अध्यापकों की नज़रो से दूर हो जाते है।
मिलते है किसी दिन तो आँख चुराते हुए दूर से ही शरमाते है
जिंदगी के अगले मोड़ पर क्या इनको हम भी याद आते है?
सरकारी स्कूलों के बच्चे फिर भी हमेशा हमारे दिलो में रह जाते है!
सरकारी स्कूलों के बच्चे, क्यों मुझको इतना भाते है, हल्की सी मुस्कुराहट लेकर दिल में ये बस जाते है ।
किशोर धीमान JBT (कनिष्ठ बुनियादी अध्यापक)