हर रोज़: बस तुम – Delhi Poetry Slam

हर रोज़: बस तुम

By Khushboo Thapa

वो कहता हैं
जब तेरी गीली ज़ुल्फ़े, तेरे गालो को छेड़ती हैं
तो जीना आ जाता हैं.
तेरी सादगी से भरी,वो चाय की चुस्कीयो की आवाज़
मेरी हर सुबह रंगीन बना देती हैं.
खिलखिलाती ये तेरी ज़ालिम नज़रे,
नींद से फिर मदहोश कर देती हैं.
जल जाता हु, जब हस कर किसी और की बाते बतलाती हैं.
खूबसूरत हैं तेरी ये नादानियाँ, जिनसे तू भागना चाहती हैं.
कैसे बतलाऊ तुझे, ये तो पगली तेरा पाक मन्न हैं.
बैठा हूँ, सुनने तुझे आज
बता ही दे, इस मूस मुस्कुराहट से भरे बागीचे मे कितने आंसू
हवा करके आयी हैं.


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