बारिश की नन्ही बूंदें – Delhi Poetry Slam

बारिश की नन्ही बूंदें

Khubi Ram

बारिश की नन्ही बूँदों ने, 
 नई छटा लहराई है। 
 रँग बिरंगी चादर ओढे, 
 नई चाँदनी आई है।
 
 डाल डाल और पात पात पर,
 नया रूप घिर आया है, 
 कुदरत ने फिर गरज बरस कर, 
 स्वर्ग धरा पर छाया है। 
 
 बाग बगीचे, ताल तलैया, 
 मंद मंद मुस्काते हैं, 
 पादप पौधे, पुष्पगुच्छ भी,
 पवन संग बतियाते हैं। 
 
 नदियों में नव जीवन आया, 
 हर तत्व हरषाया है, 
 कलियों से मकरंद लूटने, 
 मधुप टोल फिर आया है। 
 
 नृत्य गीत का मौसम प्यारा, 
 हर जन के मन भाया है,
 क्या शाम क्या सुबह देखो, 
 हर पल.खुशियों का साया है। 
 
 मेघ वृन्द नभ में छाए ज्यों, 
 पुष्प समागम पाया है, 
 अंबुधर बह रहे निरन्तर, 
 झूम के सावन आया है। 
 
 भँवरे किलकारी दे देकर, 
 कलियों को खूब पुकार रहे, 
 आसमान से जलध जमीं पर, 
 सौन्दर्य अनुपम निहार रहे।

दिव्य भूमि का दर्शन करने,
 देव अति व्याकुल हैं आज।
 छटा निराली छाई ऐसी,
 मस्ती में सब लोग लुगाई,
 बौराएं तज कर सब काज।
 
 पोखर जोहड हुईं लबालब,
 मछली दादुर सरगम गाते।
 "मेघा आए, बरसा लाए,
 आओ मिलकर खुशी मनाते।"
 
 मोती जैसे चमक रही हैं,
 दामिनी जैसी दमक रही हैं।
 मेह की बूँदें अमृत भू की,
 श्वेत वर्ण में रमक रही हैं।
 
 उजला उजला हुआ दिवस है,
 ऊष्णता से मुक्ति पाई।
 चौमासे से पावन जीवन,
 हर पल्लव पत्ती मुस्काई।
 
 घर से बाहर निकल पड़े जन,
 चेहरों पर है खुशी निराली।
 बाल वृन्द दौडे गलियों में,
 झूम रही है डाली डाली।
 
 मन मयूर भी नाच रहा है,
 कोयल कूक रही बागों में।
 नई ताजगी निखर रही है,
 नया रँग छाया रागों में।
 
 बारिश कुदरत का उपहार,
 वृक्ष धरा का अमरावतार।
 नन्ही नन्ही बूँदें देखो,
 करती धरनी का श्रृंगार।


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