By Meena Somra
काली कोई गुलाब की
खिलती नगर आई
मन क्या करे जब
नजरे ना हट पाई।
लाल रंग माई है सिमटी,
झूमती नगर आई
कुछ ना कहने पर भी
खिलती नगर आई।
माँगू तो क्या नज़रो से,
मन में एक ही समाई
रिमझिम होती नगर आई।
ना जाने कब सपना टूटा,
सामने उसे नजरो के पाया ।
अचंभित हुई देखकर नजरे,
स्पर्श पाकर तन मन खिलखिलाया ।
अब आई खिलने की बारी
बस खिलती नजर आई ।
पर अंदर से खोखली नजर आई
साखा ने भी साथ छोड़ा ।
दुनिया ने भी साथ छोड़ा
आखिरी में अकेली नजर आई
खिलती नजर आई ।