By Ketaki Salkar

मै नारी हूँ |
नैहर की परछाई हूँ,
अब ससुराल में छाई हूँ |
अक्षुण्ण सीमाओं की चादर लपेटे
अनजान रिश्ते निभाती हूँ |
आशाओं का बकुचा दिल में समाए,
निर्मोह मन में पिरोई हूँ |
अनाहत जीवन अनंत तक फैलाए
बस, आमोद समाई हूँ |
मै नारी हूँ |
Wow. Lovely poem, Ketaki. Literary gem!
Very nice poem 👌❤
Beautiful poem.
Very nicely said
Nice poem