By Kanika Chaudhary

हे द्रौपदी, हे पांचाली
यज्ञसेनी, द्रुपदकुमारी
भारत इतिहास गौरवान्वित हो जाता है ,
इसके पन्नों में जब नाम तुम्हारा आता है ।
ज्वाला से उत्पन्न तुम ,जीवन भी तुम्हारा ज्वाला सा ।
पिता का पुत्र प्रेम सहा ,सहा पत्नी प्रेम का बटवारा ।
भरी सभा में वो अपमान और बहती अश्रु की जलधारा ।
चौसर की गोटियों को हाथ लिए,
वे कुलवधू के सम्मान से खेल गए ।
वो दिग्गज योद्धा, बड़े पराक्रमी।
मौन रहकर, एक नारी की ताड़ना झेल गए।
हर नारी की पीड़ा की कुंठा बन ,
पापियों के संहार को अंजाम दिया ।
युगों युगों तक ये चीरहरण ना दोहराए ,
तुमने अपनी ममता का बलिदान दिया ।
देखो ,कैसा दुर्भाग्य इस भारत का ।
आज भी ये भारत वही खड़ा ।
लेकर बुरी निगाहें और कुटिल मनसूबे,
फिर दुशासन , हमारी आज़ादी की राह अड़ा।
इस आज़ादी तक का सफर आसान नहीं ।
हम बेटी मां की गोद में भी लड़के आई थी ।
छोटी उम्र में, बंधी वो चूड़ियों की ज़ंजीर ।
उस बंधन को तोड़, हमने किताबें पाई थी ।
समाज के असह्य तानों को सहन कर ,
बाबा ने घर की चारदीवारी लंघाई थी ।
कई दशकों से, कुरीतिओं का सामना कर।
अपनी पहचान बनाने की आज़ादी पाई थी।
देखो द्रौपदी
इस आज़ादी की क़ीमत, कैसे हमें चुकानी पड़ी।
उसी अंधी न्याय सभा में,
अपने लिए न्याय की गुहार लगानी पड़ी।
ऊँचे पद पर बैठ, हर प्रमाण मिटाने लगते हैं।
सत्ता के दम पर ,पीड़ित का ही कसूर बता ने लगते हैं।
कलकत्ता,हाथरस,कठुआ,उन्नाव
हर गाँव गली शहर कलंकित है।
आज भी भारत के सीने में ना जाने,
कितनी निर्भया की अनसुनी कहानी अंकित है।
हाँ सच है, सब के मनसूबे गलत नहीं।
दुर्योधन और गोविंद के बीच , हमें कैसे भेद हो?
नारी हैं ,नारी होने पर हमको ही क्यों खेद हो ?
द्रौपदी कहना अपने गोविंद से,
अब क्यों वो रक्षा करने आते नहीं ?
पीड़ा,तड़ना,मानहानि,शोषण ,वध
अगर यही अंजाम है एक नारी के जीवन का ,
अच्छा होता, वो नारी हमें बनाते नहीं ।
वो नारी हमें बनाते नहीं ।