By Kanak Lata Rai
हर इंसान लड़ रहा है!
हर कोई परेशान है!
कोई भूख से,
कोई बीमारी से,
कोई बेरोज़गारी से,
कोई अपनी कमजोरी से,
कोई प्रेम के अभाव से,
कोई दबंगई के प्रभाव से,
कोई रिश्तों की कड़वाहट से,
कोई समय के बदलाव से,
कोई उम्र के पड़ाव से,
कोई अपनों के खोने से,
कोई अपनों के रोने से।
हर इंसान लड़ रहा है,
अपने-अपने मोर्चे पर।
ऐसे में दयालु बने,
ऐसे में क्षमा करें,
ऐसे में धैर्य रखें,
ऐसे में हाथ बढ़ाएँ,
ऐसे में कंधा लगाएँ,
ऐसे में प्रेम जताएँ।
हर इंसान लड़ रहा है,
अपने-अपने मोर्चे पर।
कोई भूख से,
कोई बिमारी से,
कोई बेरोजगारी से,
कोई अपनी गरीबी से
कविता जैसी दी गई थी वो(मूल कविता) यहाँ वैसी नहीं है।बदली हुई है।अत: आपसे अनुरोध है कि कृपया सुधार कर लें अन्यथा अर्थ बदल जाएगा।