By Kailashchandra Nailwal

कैसे करे हम अब
शक्ति की साधना,
होती नहीं जब यहां
नारी की आराधना।
जन्म से लेकर मृत्यु तक,
हो रहा इनका सदा अपमान।
कभी कहीं तो ले रहे
जन्म से पहले इनकी जान।
घुट-घुट कर जीने को
है आज वो मजबूर,
हर समय देख रही
होते अपने सपनों को चूर।
आज हर कोई बन बैठा है
उसका भाग्यविधाता,
कोई नहीं उससे पूछ रहा-
क्या है तुमको भाता?
सिखाया जाता उसे बार-बार
"मर्यादा" में रहना,
बड़ा कठिन है उसके लिए
जंजीरों में जकड़े चलना।
जब भी और जहां भी
नारी ने अपने मन की बात बताई,
धमकियों से, हिंसा.. बदनामी करके
समाज ने उनकी आवाज दबाई।
पुरुषवादी समाज ने दे रखी
है स्वयं को स्वतंत्रता,
नारी को "मर्यादा" के नाम पर
थोप दी है पराधीनता।
बचपन से माता-पिता ने
अच्छी शिक्षा सिखाई,
दूसरे की गलती की सजा
भी केवल अहिल्या ने पाई।
ढो नहीं सकती यह धरा अब
इस अपमान का भार,
अब तो करना होगा
पुनः नारी का उद्धार।
स्त्रीदेह से बढ़ कर ना है कोई तीर्थस्थान,
उसमे ही समाए हैं.. ब्रह्मा, विष्णु, ईशान।
जन्म, पालन, मृत्यु का कारण है नारी,
अपने अंदर छिपाई है उसने सृष्टि सारी।
ईश्वर की सबसे सुंदर रचना का
'राजेश्वर' कर ले तू सम्मान,
आज हर मोड़ पर साबित कर रही
वो है पुरुषों से भी महान।