तस्वीर – Delhi Poetry Slam

तस्वीर

By Jyotsna Thawani

लफ्ज़ों को जब कविता में पिरोती हूँ, 
क़लम खुद-ब-खुद ही तुम्हारी बातें लिखती है ... लगता है ये भी बावरी है मेरी तरह ।

हर लफ्ज़ में वही एहसास है,
तुम्हें फिर पाने की धुंधली आस है ।

हाँ धुंधली क्योंकि ....

वक़्त गुज़र रहा है धीरे-धीरे,
यादें जैसे किसी संदूक में बंद हो चुकी हैं। 
धूल से सना वही बक्सा जिसमें तुम्हारी तस्वीरें हैं,
कुछ ख़त और तौहफे भी शायद...

जिन्हें देखे, पढ़े आज अरसा हो चुका है ।
दिल तो बहुत करता है,
पर.....

इस बीच हर बार, नज़र संदूक पर जाने से पहले,
जाने अन्जाने ही सही, 
उस खूबसूरत तस्वीर पर चली जाती है,

वही.... जिसमें तुम मुस्कुरा रहे हो,
तुम्हारी आँखें गपशप कर रही हैं।

वही.... जिसकी फूलों की सुंदर माला मैं हर रोज़ बदलती हूँ ।


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