By Jyotsana Soni

ढलते हुए दिन की जुगलबंदियाँ ज़रा देखो
साँझ के अंबर पर कलाकारी ज़रा देखो।
बिखरा है केसरिया रंग आकाश में,
शायद किसी चित्रकार का काम हो।
पर ढूँढूँ तो कोई नहीं दिखता,
भला इतना कौन है जो इतना छुपता?
घर लौटते पक्षियों से पूछूँ,
कि ये दृश्य किसका काम है?
तुम्हें दिए पंख जिसने, उसका क्या नाम है?
कौन है वो जिसने शाम को मनमोहक बनाया,
कौन है वो जिसने तुम्हें उड़ना सिखाया?
ज़रा उसका नाम तो कहो,
ज़रा उसका गाँव तो कहो।
जाओ उससे पूछकर आओ—
क्या बचा है उसके पास वह रंग
जिससे बन सके मेरे लिए पंख?
शायद वह भूल गया हो,
तुम उसको याद दिलाओ।
तुम मेरे लिए भी पंख ले आओ,
तुम मेरे लिए भी पंख ले आओ।।
Proud of you 🎉🎉🥳
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Excellent peom
Very nice poem ☺️
Ati sunder poem
Lovely poem…. depicting the thoughts and emotions in a wonderful manner
Lovely poem…. depicting the thoughts and emotions in a wonderful manner
Superb😍bhut sunder poem bless you beta
Very nice poem
Nice poem
It’s so beautiful and insightful ❤️
बहुत ही सुंदर कविता लिखी है आपकी कविता आपके व्यक्तित्व का आईना है। मुझे गर्व है आप पर। 💕🎉👌👌👌
Lyrical bliss✨
बहुत ही सुंदर व्याख्या दी है आपने।
बहुत ही बढ़िया, सुंदर अति सुंदर।।।
Deep🪽
Beautiful and pure 👌🏻
Proud of you 🎉🎉🎉🎉🎉