Jyoti Gupta – Delhi Poetry Slam

Maa ka astitva

By Jyoti Gupta

क्या मेरा अस्तित्व है, जाने अब कहाँ हूँ मैं |
कहते हैं इश्वर से बढ़कर हूँ, सब कहते हैं माँ हूँ मैं ||

अनजान था जब तू हर चीज़ से, हर बात तुझे समझाती थी,
एक बार समझ न पता था तू, बार - बार दोहराती थी,
तेरी हर चाह को पूरा करना जैसे मेरा फ़र्ज़ था,
भले ही मेरी ज़रूरतों का कितना भी मुझ पर कर्ज़ था,
तेरी दुनिया बस मुझसे थी, और तू ही मेरी दुनिया था,
मेरे हर दिन पे तेरा ही हक, हर रात पे तेरा पहरा था,
तेरे मुँह से एक आह भी न निकले मैं कितने आँसू पी जाती थी,
तेरी एक मुस्कान से मेरी हर खुशी जीं जाती थी,
बिना तेरे कुछ बोले ही तेरी हर बात जानती थी मैं,
तेरी हर धड़कन को तुझसे बेहतर पहचानती थी मैं,

फिर एक दिन ऐसा आया तू बड़ा हो गया थोड़ा,
तेरी दुनिया में मेरा दायरा सिमट गया थोड़ा,
तू अपनी नई दुनिया के पीछे भाग रहा दिन रैन था,
की भूल गया तू घर पे कोई तेरे लिए बेचैन था,
तेरी चिन्ता में हर पल दिल ये मेरा घबराता था,
"माँ मैं देर से आऊंगा", जब तू ये कहकर जाता था,
जाते-जाते देखेगा तू मुझको पलट के एक बार,
इसी चाहत में तेरे मुड़ने का मैं करती रहती इंतज़ार,
ना इंतज़ार मेरा खत्म हुआ, ना मुद्के देखा तूने कभी,
और तेरी ही राह ताकते गुज़र गए मेरे बरस सभी,

अब मैं हूँ अन्तिम मोड़ पर, और तेरी है अपनी दुनिया,
हैं एक दूजे के साथ हम फिर भी दूरी हैं दरमियाँ,
बदल गया है वक्त पर ना मैं ख़ुद को बदल पाई,
आज भी तेरी मुस्कान से लगता है की मैं मुस्काई,
आज में नज़र आते मुझे कुछ अतीत के धागे हैं,
आज भी तेरी चाहतें मेरी ज़रूरतों से आगे हैं,
ना गिला तुझसे कोई और न ही कोई शिकवा है |
तू तब भी मेरी दुनिया था, तू अब भी मेरी दुनिया है ||


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