By Jyoti Ahuja
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हाँ मैं एक स्त्री एक नारी हूँ,
ईश्वर ने की कुछ सोच कर मेरी संरचना,
मैं हृदय तल से आभारी हूँ,
कुछ सोच समझ कर,
उसने मेरा एक एक अंग बनाया,
मुझे दे वरदान माँ बनने का,
नवजीवन के पालन हेतु,
दुग्ध ग्रंथियों को बनाया।
उसकी बनाई संरचना को दुराचारी की लगती जब बुरी नजर,
काम एवं वासना से युक्त जब उसकी टपकती लार,
क्या होता होगा मुझ पर बुरा उसका असर,
जलती है क्रोध की ज्वाला भीतर मेरे मन में,
मैं नहीं करूंगी जौहर अब, उत्तंसी रण में,
नेत्रों में मेरे घबराहट नहीं, प्रतिशोध की अग्नि जल रही है।
क्यों हम स्त्रियां ही सहे, सब सहने की शक्ति थम रही है,
मिलेंगे अनेक शूरवीर तुम्हें इस पूरे संसार में,
आवश्यक नहीं, बनना है मुझे काली, करने खात्मा एक वार में,
वासना की जंजीरों में जकड़ना अब मुझे गंवारा नहीं,
मैं शक्ति की मूर्ति हूँ, मुझे सम्मान चाहिए, सहारा नहीं!