मनुष्य नायाब – Delhi Poetry Slam

मनुष्य नायाब

By Jyoti Sharma

जीवन कहता चलते जाना 
बीते पल मुड़ नहीं आना
फिर भी भूत लगे भला
भविष्य से मनुष्य रहे डरा
जाने सब अगले पल पर नहीं ज़ोर फिर भी हर पल लगी है होड़
मुझे जाना सबसे आगे
मैं चाहूँ दुनिया पीछे भागे.
फिर भी नहीं चाहिए जिम्मेदारी

चले मेरी ही मर्जी से दुनिया सारी
हो मेरे कहे अनुसार
राम, कृष्ण, बुद्ध सबके विचार
जोडू मैं सब अपने अनुकूल
तोडू सब जो है मेरे प्रतिकूल
फिर हारूं तो रामा राचि राखा
जीतूँ तो मेरे कर्म की व्याख्या
मैं हूँ कर्मशील तभी तो चले संसार। डोली ज़रा धरा अरे शेष पर है धरती का भार
मैं और मेरा सारा संसार
मैं और मेरा सारा कारोबार
लाभ, पर ही हूँ मैं हकदार
हानि हो तो भाग्य पर विचार
कितना समझदार हूँ मैं जनाब
तभी कहलाऊँ मनुष्य नायाब ।


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