मेरा मित्र – Delhi Poetry Slam

मेरा मित्र

By Jaspreet Sharma


मन भावुक हुआ देख के उसे अचल
मेरे मित्र! दिखा कोई हलचल
वफादारी और निष्ठां का प्रतीक
मेरा मित्र!
अब आँखों मैं शेष रह गया धुन्द्ला सा चित्र
मेरा मित्र!
घर मैं न कोई उल्लास है
अब वो मैली गेंद भी उदास है
घर का फर्श अब चमकता है
क्यों कि सने कीचड़ से न कोई चलता है
बस आँखों मैं रह गया धुंदला सा चित्र
मेरा मित्र!
अनगिनत खरोंचो के बावजूद चुप हैं धोबी और माली
क्यूंकि मेरा मुख्य द्वार है खाली
वह द्वार जहाँ रहता था मेरा मित्र
अब शेष है धुंदला सा चित्र
मेरा मित्र !
अब मज़ा नहीं सूखी अख़बार कि बातों मैं
जब अचल हो गया जो लाता था अखबारों को दांतो में
मेरा मित्र!
मेरे सुख मैं खुश, मेरे दुःख मैं भी मचलता
कहाँ चली गयी वो चंचलता
मेरे जागने मैं सोया रहता
तो मेरे सोने पे आँख भी ना मूँदता
मेरा मित्र!
मेरे नाम पे कर गया अपनी जायदाद वो सारी
एक बालो भरा गद्दा, टूटी गेंदे
कुछ लकड़ी के टुकड़े और बिखरी हुई क्यारी
अब इस क्यारी में ही समां जायेगा
मेरा मित्र, मेरा मित्र !

प्रीती


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