By Jaiprakash Agrawal
कुरुक्षेत्र बना युद्धक्षेत्र,
जहां हुआ धर्मयुद्ध,
एक तरफ कौरवों की सेना भारी,
दूसरी तरफ कृष्ण जिनके सारथी बने,
ऐसे अर्जुन धनुषधारी।
गुरु द्रोण ने रचा चक्रव्यूह
जिसके बनाए सात द्वार।
भेदन जिनका कठिन काम,
कोई वीर ही कर पाए पार।
अभिमन्यु जैसा वीर युवा,
जीवन का जिसने जाना धर्म,
कूद पडा रणभूमि में
चक्रव्यूह भेदन का लिए प्रण।
चक्रव्यूह का भेदन करना
कर्मों का है विधान,
भेदन करना लक्ष्य हमारा
फलों पर न हो ध्यान।
युद्ध किया महारथियों से
और लडते लडते दिए प्राण,
कर्म यही हर मानव का
गीता का भी यही ज्ञान।
शरीर बना चक्रव्यूह
उर्जा के हैं सात द्वार।
भेदन इनका कथिन काम
जो कर पाए सो उतरे पार।
छल कपट की है यह दुनिया,
रचती चक्रव्यूह का माया जाल
जब पराक्रम हो अभिमन्यु सा,
झुकते नहीं, भले जाए प्राण।
अभिमन्यु सा पुत्र ही
संस्कार पिता का पाते हैं।
कुरुक्षेत्र की रणभूमि में,
अद्भुत शौर्य दिखाते हैं।
लक्ष्य जीत का हमें रहे,
कर ले शत्रु कितने छल
भेदन करें हम सात द्वार,
कर शत्रु दमन पल पलकुरुक्षेत्र बना युद्धक्षेत्र,
जहां हुआ धर्मयुद्ध,
एक तरफ कौरवों की सेना भारी,
दूसरी तरफ कृष्ण जिनके सारथी बने,
ऐसे अर्जुन धनुषधारी।
गुरु द्रोण ने रचा चक्रव्यूह
जिसके बनाए सात द्वार।
भेदन जिनका कठिन काम,
कोई वीर ही कर पाए पार।
अभिमन्यु जैसा वीर युवा,
जीवन का जिसने जाना धर्म,
कूद पडा रणभूमि में
चक्रव्यूह भेदन का लिए प्रण।
चक्रव्यूह का भेदन करना
कर्मों का है विधान,
भेदन करना लक्ष्य हमारा
फलों पर न हो ध्यान।
युद्ध किया महारथियों से
और लडते लडते दिए प्राण,
कर्म यही हर मानव का
गीता का भी यही ज्ञान।
शरीर बना चक्रव्यूह
उर्जा के हैं सात द्वार।
भेदन इनका कथिन काम
जो कर पाए सो उतरे पार।
छल कपट की है यह दुनिया,
रचती चक्रव्यूह का माया जाल
जब पराक्रम हो अभिमन्यु सा,
झुकते नहीं, भले जाए प्राण।
अभिमन्यु सा पुत्र ही
संस्कार पिता का पाते हैं।
कुरुक्षेत्र की रणभूमि में,
अद्भुत शौर्य दिखाते हैं।
लक्ष्य जीत का हमें रहे,
कर ले शत्रु कितने छल
भेदन करें हम सात द्वार,
कर शत्रु दमन पल पलकुरुक्षेत्र बना युद्धक्षेत्र,
जहां हुआ धर्मयुद्ध,
एक तरफ कौरवों की सेना भारी,
दूसरी तरफ कृष्ण जिनके सारथी बने,
ऐसे अर्जुन धनुषधारी।
गुरु द्रोण ने रचा चक्रव्यूह
जिसके बनाए सात द्वार।
भेदन जिनका कठिन काम,
कोई वीर ही कर पाए पार।
अभिमन्यु जैसा वीर युवा,
जीवन का जिसने जाना धर्म,
कूद पडा रणभूमि में
चक्रव्यूह भेदन का लिए प्रण।
चक्रव्यूह का भेदन करना
कर्मों का है विधान,
भेदन करना लक्ष्य हमारा
फलों पर न हो ध्यान।
युद्ध किया महारथियों से
और लडते लडते दिए प्राण,
कर्म यही हर मानव का
गीता का भी यही ज्ञान।
शरीर बना चक्रव्यूह
उर्जा के हैं सात द्वार।
भेदन इनका कथिन काम
जो कर पाए सो उतरे पार।
छल कपट की है यह दुनिया,
रचती चक्रव्यूह का माया जाल
जब पराक्रम हो अभिमन्यु सा,
झुकते नहीं, भले जाए प्राण।
अभिमन्यु सा पुत्र ही
संस्कार पिता का पाते हैं।
कुरुक्षेत्र की रणभूमि में,
अद्भुत शौर्य दिखाते हैं।
लक्ष्य जीत का हमें रहे,
कर ले शत्रु कितने छल
भेदन करें हम सात द्वार,
कर शत्रु दमन पल पल।