सब मोह माया – Delhi Poetry Slam

सब मोह माया

By Jai Jha

कुछ नहीं संसार में अपना, यहाँ सब मोह-माया,
कुछ नहीं रखा है इस दुनिया में, सबका सब पराया।
है ख़ुशी कहने को बस, साथ रहता दुख का साया,
है यहाँ बिखरा हुआ सब कुछ, कहीं कुछ मन को भाया।
कुछ नहीं संसार में अपना, यहाँ सब मोह-माया।।

याद करता हूँ तो सोचूँ, था बहुत कुछ ही कमाया,
था बहुत इज़्ज़त या कुछ पैसा, यहाँ सब कुछ गँवाया।
याद अब रखना नहीं कुछ, जो भी था सब कुछ भुलाया,
दुःख तो है इस बात का, दुनिया में आके किए वक़्त जाया।
कुछ नहीं संसार में अपना, यहाँ सब मोह-माया।।

अब रात जगता भोर तक, तब तक न एक पल नींद आया,
या सुकूँ की खोज में भटका, यूँ ही दिन भर कटाया।
सोचता बस रह गया, क्यों है जगत्, क्यों ही बनाया?
या बनाया भी अगर तो, क्यों दिया ये दुख की छाया?
कुछ नहीं संसार में अपना, यहाँ सब मोह-माया।।


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