By Pratya Singh

हर इश्क़ की अपनी रिवायतें हैं
कुछ मजबूरियाँ
कुछ बेबसी
कुछ क़तरे हुए पंख
हर इश्क़ की अपनी सिलवटें हैं
कुछ आँखों में बसती
कुछ आँचल में खिंचतीं
कुछ पानियों के बीच
बनती बिगड़ती
हर इश्क़ की अपनी सरगोशियाँ हैं
कुछ लाल गालों सी
कुछ लाल होती आँखों सी
कुछ भींचते हुए होंठों सी
हर इश्क़ की अपनी कहानियाँ हैं
कुछ पहली नज़र की
कुछ रिश्तों के बोझ ढोतीं
कुछ दरारों के बीच पनपतीं
हर इश्क़ अपने में ख़ास
कुछ बनाता
कुछ बिखेरता
हर रात तन्हाई का ज़हर
कभी मीठा
कभी कड़वा
हर इश्क़ की अपनी ही रिवायतें हैं.....