By Indira Gupta

गहन कुहासा चीर कभी तो
सूरज फिर से दमकेगा।
छायेगी नभ में फिर लाली,
जग उजियारा सा होगा।
मक्कारी और बदमाशी की
चाल नहीं जब होएगी,
हर चूल्हे में आग जलेगी,
भूख ना बंजर बोएगी।
हाथ हाथ से मिला करेंगे,
दगाबाज़ तब रोएगा।
रिश्तों की गरिमा लौटेगी,
मात-पिता का आदर होगा।
गहन कुहासा चीर कभी तो
सूरज फिर से दमकेगा।
नारी चौसर दाँव लगे ना,
कोख में मारी जाए ना।
ना ही ज़िंदा चिता चढ़े,
भस्मीभूत फिर होए ना।
अस्मिता राख ना होगी,
तेजाब ना कोई बेचेगा।
ना होगा व्यभिचार धरा पर,
बचपन डरा नहीं होगा।
गहन कुहासा चीर कभी तो
सूरज फिर से दमकेगा।
नल में पानी, खेत में धानी,
जल-थल में हरियाली हो।
कर्म-भाव भरा हो मन में,
कपट, ईर्ष्या खाली हो।
जीवन से संताप भागेगा,
सुखमय जीवन तब होगा।
आँखों के सपने सच होंगे,
अपनापा सब में होगा।
गहन कुहासा चीर कभी तो
सूरज फिर से दमकेगा।
स्वरचित मौलिक रचना:
डा. इन्दिरा गुप्ता 'यथार्थ'
राजस्थान