By Himanshu Shekhar

पहली दफ़ा जो नज़रें मिली थीं तुझसे,
दिल ने मेरे मुझसे कहा था —
मैं धड़क रहा हूँ... क्या तू सुन रहा है?
तुम जो आए थे सामने यूँ ही पलकें झुकाकर,
और नज़रें मिलीं तो मौसम बदल सा गया था।
फिर बारिश की उस बूँद ने मुझसे कहा था —
मैं बरस रहा हूँ... क्या तू सुन रहा है?
तेरा क़रीब आना, फिर मुस्कुराना,
मुस्कुराहट का तेरी मेरे दिल को चुराना।
समझा रहा था मन मुझे तेरे हर इशारे को,
और पूछ रहा था मुझसे — क्या तू सुन रहा है?
ज़ुल्फ़ों का तेरी यूँ ही बिखर जाना,
जैसे काले बादलों का पनघट पे छा जाना।
उँगलियों से मैं अपनी तेरी ज़ुल्फ़ें संवारूँ —
कह रहा है मेरा मन तुझसे, क्या तू सुन रहा है?
ख़्वाहिशें इधर भी जगने सी लगी हैं,
पर सामने जो तू है, होंठ सिल से गए हैं।
ले कर दिया इशारा मैंने भी मुस्कुरा कर,
फिर मेरी आँखों ने जो कहा — क्या तू सुन रहा है?