बिदाई – Delhi Poetry Slam

बिदाई

By Himanshi Kushwaha

 

 

नाजों से पली 
अपने आंगन की लाड़ली 
फ़िर एक दिन वो 
दूजे घर को चली 
अरे! रुको, रुको!!
ऐसे कैसे हो बिदाई
अभी तक तो नई कार भी न आई,
लड़की के पिता ने जोड़कर हाथ
बोला मोटरसाइकिल की हुई थी बात 
और वो तो जा रही है साथ,
तभी लड़के वालों ने उठाया सवाल
आजकल कौनसी बिदाई होती है बिन बवाल!
अगर हमने न की दो चार फरमाइशें ज्यादा
तो लड़के वाले होने का क्या ही फायदा,
अब देख लीजिए आप ही,
आपको ज़रूरी है अपनी बेटी की बिदाई
या इस बात की बहस,
कि नई कार नहीं लाई क्योंकि,
मोटरसाइकिल की माँग की थी
और वो तो दी है भई ।।१।।
लड़की के चाचा ताऊ अब सब आए सामने
कहा हमारी बात को भी तो समझें,
अब इतने जल्दी कार का इंतजाम कैसे करें
आप अभी कर लीजिए हमारी बिटिया को विदा 
कुछ दिनों में नई कार पहुंच जाएगी आपके यहाँ।
इतनी मिन्नतों को देख 
गया पिघल लड़के वालों का पत्थर सा दिल,
अच्छा ठीक है हो जायेगी बिदाई
लेकिन पहले ये बताइए
नया बेड नया सोफा ये सब कहाँ है भाई?
लड़की वालों में हुई थोड़ी हलचल 
पता चला क्योंकि दुकान अभी खुली नहीं
इसलिए सोफ़ा बेड की डिलीवरी हुई नहीं
लड़के वाले ये सुनकर
बैठ गए वहीं धरना पर,
जब तक नहीं आएगा पूरा सामान
तब तक नहीं ले जायेंगे आपकी लड़की,
ऐसे खाली हाथ लौटेंगे तो न सिर्फ़ हमारी नाक कटेगी
बल्कि खानदान में भी होगा अपमान।।२।।
देखकर लड़के वालों का लालच, ज़िद और घमंड
लड़की वालों ने लिया एक प्रण प्रचंड,
उन्होंने ली ठान
ना देंगे अब कोई सामान,
ना होगी बिटिया की बिदाई
जो करना है समधी जी करिए आप
आखिर हमारी भी कोई इज़्ज़त है भई।
जब ये बात पहुँची जानवासे में
तो माँ को अपनी बिटिया की चिंता सताई,
जो न हुई उसकी बिदाई 
तो पूरे जीवन भर होगी जग हंसायी!
दोनों पक्षों में तन गई है बात,
बेटी फंसी है बीच में, 
बुरे हुई हालात।
बेटी की बिदाई, बरसों पुराना संघर्ष,
नए घर की राहें, नए दर्द की सिफारिश
21वीं सदी में भी आखिर क्यों चल रही है 
सदियों पुरानी रूढ़ियाँ और साज़िश!
क्या यही है शादी, क्या इसे कहते हैं प्यार?
एक सवाल जो रह जाता अनकहा, बार-बार।।३।।
अब तक जो दो लोग खड़े थे चुपचाप
बस सुन रहे थे सबकी बातें,
आए वो सामने एक दूसरे से नज़रें मिलाते,
लड़की ने पूछा लड़के से सवाल
आखिर क्यों मचा दहेज़ के लिए बवाल?
मैंने तुमसे पहले ही की थी इस बारे में बात
कि लेन देन को लेकर नहीं बिगड़ने चाहिए कोई हालात,
तब तुमने मुझसे किया था वादा,
कि ऐसी फरमाइशों का किसी का भी नहीं है कोई इरादा,
फ़िर जब होने को आई बिदाई
तो क्यों कैसे ये दुर्घटना घटाई?
लड़के ने बताया उसे भी ना था इस बात का अंदाज़ा
कि दहेज़ को लेकर मच जाएगा इतना हंगामा।
तभी घर के बड़ों ने लगाई फटकार,
हिम्मत कैसे हुई तुम दोनों की
बिदाई से पहले यूँ बात करने की 
यूँ नज़रें मिलाने की
क्या यही हैं हमारे दिए हुए संस्कार?
लड़की की माँ ने उसे अपने आँचल में छुपाया
तो लड़के ने अपने परिवार पर सवाल उठाया,
कौन से संस्कार, कैसे आचार
जिसमें सम्मान नहीं सिर्फ़ सामान का ही है विचार!
एक माँ बाप ने दी अपनी अमानत, अपनी बिटिया
क्या वो काफ़ी नहीं,
जो आपको चाहिए कार, सोफ़ा, बिस्तर
साथ में गद्दा भी और तकिया?
लड़की मन ही मन मुस्कुराई 
देने अपने पति का साथ
माँ के आँचल से निकल बाहर आई,
आप लोगों के घर भी है बिन ब्याही बेटी
क्या करेंगे कल जो उसकी बिदाई भी न हुई?
चलिए आपने तब कर लिया सब स्वीकार
नहीं किया दहेज़ के लिए इन्कार 
दे दिया उनका फरमाइशी सामान और मनचाही कार
लेकिन आपकी बेटी का सम्मान तो हो गया बेकार,
क्या मतलब ऐसी बिदाई का
जिसने आपकी बेटी का चैन सुख सब ले लिया,
आगे और बढ़ती रोज़ सामान की फरमाइश
जो न की पूरी,
तो शायद बेटी के बचने की कम है गुंजाइश...
सुबह की प्रताड़ना, रात में ताने
कभी मार पीट तो कभी जलाने तक की आजमाइश,
कितना कुछ उसे सुनना सहना पड़ेगा आखिर कौन जाने?
बचाने अपना ख़ुद का ईमान  
आपने क़ुर्बान कर दिया उसका सम्मान,
मान कर दहेज़ प्रथा
देकर इतना सारा सामान,
पराया किया न सिर्फ़ ये घर
पढ़ लिखकर जो बनाई थी उसने पहचान
वो तो खोया ही,
और साथ छिन गया उस घर से भी उसका अभिमान।।४।।
सोच ये सब हालात,
लड़के के माँ बाप लिए आँख में आंसू
जोड़े समधी समधन के सामने दोनों हाथ,
आपकी बेटी है समझदार
की है बिल्कुल पते की बात,
बेटे की शादी में याद ही न रहा
हमारे घर में भी है एक बेटी
जिसकी बिदाई होने को है अभी,
खोल दी दोनों बच्चों ने आँख हमारी
न हमें चाहिए अब कोई सोफ़ा या बेड
ना चाहिए कोई भी गाड़ी,
सिर्फ़ एक जोड़े में ही होगी
आपकी लाड़ली की बिदाई,
पूरे जानवासे में जैसे रौनक लौट आयी।
लड़के लड़की की मिली एक दूजे से नज़र
मुस्कुराए दोनों सोच अपना आगे का सफ़र,
वैसे तो ये शादी न है प्यार वाली
लेकिन इसमें है एक दूजे के प्रति सम्मान
समझदारी और वफादारी...
मेरा साथ देने के लिए,
मुझ पर भरोसा करने के लिए शुक्रिया 
लड़के की आँखों ने इशारा किया
मेरा सम्मान रखने के लिए,
वफादारी निभाने के लिए,
आपका भी, दिल से शुक्रिया।।५।।
अरे अरे! थोड़ा जल्दी करो बिदाई,
अभी तो जेब खाली होने की है आपकी भाई,
घर की नन्ही कलियां जो थी अब तक मुरझाई
उनके भी होठों पर मुस्कुराहट वापस आई…
जल्दी करिए मम्मी पापा काका काकी 
हमारा नेग भी कितने देर से है बाकी।
इस हँसी ठिठोली में
चूमकर सास ने लड़की का सर
उतारी उसकी नज़र,
खुशनसीब है हमारा परिवार
जो बहु के रूप में बेटी पाई इतनी समझदार,
चलो बेटी अब लो यहाँ से बिदाई,
और करो उस घर में मुँह दिखाई,
इस आँगन की लाड़ली चली
उस आँगन में बनने नन्ही कली,
बिदाई का संघर्ष हुआ बदलाव के साथ पूरा,
एक सवाल जो था अनकहा, था अधूरा
सूझबूझ व अपनेपन से, अंततः हो गया पूरा।।


7 comments

  • Amazing! Aapne bohot hi jyada mirror showing poem likhi hai wo bhi itni sahajta se, shabdo me tarif kam hai! keep it up.

    Mitali
  • Bahut hi khub likhi hai kavita aapne…har ek shabd dil ko touch kar jata hai

    Hita
  • Beta ye Kavita bahut hi acchi hai dil ko touch kar gyi.

    Nirupama kushwaha
  • अति सुंदर, आज के भौतिक वादी युग में कास हर परिवार समझ सके।।

    HL Kushwaha
  • Bahot hi khoob h ye kavita. Rula diya Himanshi tumne 🩷😥

    Indrani
  • मेरी लाडो की कविता बहुत अच्छी है जीवन का सबसे बड़ा कड़वा सच दहेज

    अरुणेन्द्र सिंह
  • Thankyou for publishing my poem as a token of appreciation.

    Himanshi

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