एक मां के सपने – Delhi Poetry Slam

एक मां के सपने

By Himani Agarwal

मां है वह मोती जिसके आगे पूरी सृष्टि भी है छोटी,
आसमां भी कम पड़ जाए,
जब मां अपने आंचल में छुपाए।

मां! तू कितनी नादान है,
खुद अपने ही सपनों से अनजान है।
हमारे सपनों को तू सजाती रही,
हमें ऊंचाइयों पर पहुंचाती रही।

ढूंढ ली मुस्कुराने की वजह तूने हममें ही,
और खुद अपनी ही खुशी छुपाती रही,
अपने सपने दबाती रही।

अब उठ, खड़ी हो,
तेरा सहारा अब बनूंगी मैं।
तेरे सपनों को दूंगी पंख,
चलूंगी हर कदम तेरे संग।

जो खोया है तूने जिंदगी में कहीं,
वो हासिल करेंगे मिलकर यूं ही।

तेरी तरह हर ख्वाहिश पूरी तो न कर पाऊंगी,
पर तेरा हाथ पकड़,
अब तुझे तेरे सारे ख्वाब लिखवाऊंगी।

तेरी तरह वादों की पक्की तो न हो पाऊंगी,
पर तेरे हर बढ़ते कदम में साथ निभाऊंगी।

जो कहता है "तू करती क्या है दिनभर?
काम ही क्या है तुझे?
घर ही तो संभालती है!"

उन्हें अब दिखाना है—
खोए हुए सपनों को मां!
अब तुझे सजाना है।
खुद अपनी पहचान को अब तुझे बनाना है,
अपना मुकाम तुझे पाना है।।


3 comments

  • Wonderful work…! Truly inspirational

    Sakshi
  • Beautiful captured each and every struggle a mother makes in her life.
    Completely relatable.
    Kuddos to the author, who portraited it in such a beautiful manner👌👏

    Chetna
  • Thanks for this appreciation 🙏🏻 such a competition is a great platform for a budding writer like us.. looking forward for more such competition..

    Himani Agarwal

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