By Hemisha Shah
कुछ अनकही थी जो खुद को ही बताते गए,
खुद को किया इतना परवान के हर सर-ज़मीं को जलाते गए...
उस मंज़िलों से मिली ठोकरों से कुछ सीखा,
के इस मंज़िल पे हर ठोकर से पहले, पत्थर को उठाते गए...
दुनिया की भीड़ से कितना शोर हुआ,
के हम मनचाही यादों को तन्हाइयों में बुलाते गए...
निकलते मंज़िलों पे खुद ही अकेले,
फिर हर कारवां को, हम दिल-ए-दास्तां बताते गए...
मोहब्बत हुई फिर ऐसी दिल पे लगी,
के हम नज़रों से हर बात जताते गए...
काँटों की टक्कर मिली मोहब्बत में हमें यार,
वो नज़र उठाते गए और हम क़लम चलाते गए...
फिर रूठने-मनाने की मौसम चली,
आँसुओं से खुद का ही दामन सजाते रहे...
मंज़िलों से आगे बढ़ना ही ज़िंदगी है,
फिर हर याद पीछे छोड़ जलाते गए...
फिर हर याद पीछे छोड़ जलाते गए...