By Harsh Sharma

गंगा के तटों पे रौनक है हर रोज़ नए त्योहारों की,
कभी मेला पूर्णमासी का तो कभी धूम मची है स्नानों की।
हम आत्मा से आभारी हैं उस देवऋषि भागीरथ के,
जिनके तप से आयीं गंगा, शिव जटा से चल हमारे तीर्थ पे।
गंगा जल की है धार नहीं, भारत की आत्मा इसमें बसती है,
जीते जी हरतीं पाप सभी मरने पे मुक्ति देतीं हैं।
गोमुख से चल कर माँ गंगा भारत को अमृत पिलाती हैं
और पहुँच मुहाने सागर के गंगा - सागर से उसमें समातीं हैं।
जीवन दायनी माँ गंगा का रूप बड़ा ही निर्मल व् निश्छल होता है,
लेकिन हम सब के कर्मों से वो अब आहत है और व्हीवल है।
गंगा का प्रदूषण हरने को प्रयास तो बहत से जारी हैं,
गर ये सब न हो पाया तो फिर पुण्य पाप में बदलेंगें,
जीवन मुक्ति को तरसेगा और पाप प्रलय में बदलेंगें।
नमामि गंगे