स्वाल – Delhi Poetry Slam

स्वाल

By Harjeet Singh Khurana

 

यूँ तो अक्सर प्रश्न करता है
मगर आज मेरे मन ने किया मुझसे अनोखा स्वाल

पूछा मुझ से शरारत भरी मुस्कान के साथ
क्या मुझे वश में करने का आता है ख़्याल

सकपकाया मैं एकदम से, सोचा जान ना ले कहीं यह मन की बात
इस को क़ाबू करने का ही तो है सब बवाल

चुप देख कर बोला मुझे वो जानता हूँ मैं क्या सोच रहे हो तुम
प्रश्न सुनकर मेरा मेरे भाई क्यों हो गये हो गुमसुम

हम दोनों का तो जीवन भर का साथ है
पैदा हुए हो जब से तुम, हाथ में तुम्हारे मेरा हाथ है

झटका मैंने हाथ को और कहा बहुत सताता है तू
पल भर में सैंकड़ों मील भगाता है तू

डराता है तू और तेरी वजह से होती है घबराहट
भूल गया हूँ हंसना गाना और छिन गई है मुस्कुराहट

मन बोला मेरा तो काम है ख़्वाब दिखाना
तुम्हारे भीतर अनेकों भोगों के लिए चाहत जगाना

सीधी साधी भाषा में बस माया का विज्ञापन करता हूँ
और इस विपणन की कमाई से अपना पेट भरता हूँ

कैसे पाएँ तुम्हारे इन विषयों से छुटकारा
ताकि चैन से गुज़र सके जीवन हमारा

मन बोला वैसे तो मेरे असूलों के ख़िलाफ़ है
मगर तुम्हारी विनती पर करता हूँ छोटा सा इशारा

ध्यान लगाओ अपना कहीं और
मदद करेगा तुम्हारी अलबेला इक चितचोर

सुना तो है निरंतर पुकारो अगर उस का नाम
खींच लेता है कस के वो मन की लगाम

ध्यान मग्न हो कर अब लगानी है उस से प्रीत
एक ही लक्ष्य है अब तो
प्राप्त करनी इस मन पर जीत


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