By हरीश डंगवाल

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वादियों में आज मचा शोर क्यूँ है?
जन्नत भी धुंआ धुआं सा क्यूँ है ?
हवा की खुशबू केशर की महक
दरख्ते चिनार भी लाल क्यूँ है ?
आब ओ हवा की ताजगी खो गई।
मानवता नींद में फिर सो गई।
सिसकियां सबब बन गई घात का।
कुछ तो मजनून होगा हालत का।।
वादियों में धुआं धुआं सा क्यों है?
पहिचान भी जब खता बन गई।
जिंदगी तब मेहमान बन के रही।
आंसू भी पहचान न दे सका जब,
सांसे फिर निगेहबान बन के रही ।
सपने बुने थे जो आज टूट गए।
ख्वाब थे दिल में जो बिखर गए।
वादियों में आज मचा शोर क्यूँ है ?
जन्नत में आज धुआं धुआं सा क्यूँ है ?
जन्नत देखना भी गुनाह बन गया।
मुहब्बत का साथ भी मात दे गया।
झेलम का “आब” ख्वाब में रहा।
लख्ते- जिगर पर जो जख्म दे गया।
वादियों में आज मचा शोर क्यूँ है?
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Nice thought s