Haqeeqat e Buland – Delhi Poetry Slam

Haqeeqat e Buland

By Arbaz Khan

बातें बड़ी मैं करता ज़माने में शान से।
देता ना दाई को कभी अपने मकान से।

लोगों को बस में कर लिया दौलत के राज में।
सुख मै खरीद पाया ना किसी दुकान से।

ख्वाइश तो देखो रखता हूं छूने की आसमा।
लेकिन मुझे डर लगता है ऊंची उड़ान से।

दर पे जो पहुंचे क़र्ज़ ख्वा मुझ चालबाज़ के
खुद की दिफा मै करता हु झूठे बयान से।

औरों का मै टटोलता मस्जिद से वास्ता।
मुझको फरक ना पड़ता किसी भी अज़ान से।

बु आती है किरदार से मेरे बद ज़ुबानी की।
फैला रहा हु घर में मै खुशबू लोबान से।

खाता हु उसकी नेमतें रहता हु ऊस्से दूर।
जिसने मिलाया है मुझे इस दो जहान से।

कहता हु ये बुलंद तू मेरी बात मान ले।
तौकीर छीन लेता खुदा बे ईमान से।


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