By Siddharth Singh
अम्बर में सितारे और भी हैं
रातें अभी बाक़ी और भी हैं
नालें अभी अपनी कर न ज़ाया
दुख तो अभी बाक़ी और भी हैं
उन आँखो ही पर निसार क्यों हूँ
इंसाँ अभी बाक़ी और भी हैं
कहते हैं मुझसे के न बोल अब
लेकिन वर्ण बाक़ी और भी हैं
कहते ‘राहिल’ को ‘मीर’ अभी से
लेकिन पथ बाक़ी और भी है