Ghazal – Delhi Poetry Slam

Ghazal

By Dr Sajid Premi

महीने तीस के इकतीस के हैं 
हमारे पास पैसे बीस के हैं 

चबा डाला हमारी हसरतों को 
ज़माने में हुनर बत्तीस के हैं 

किए जाएंगे अब हल किस सदी में 
जो सारे मसअले इक्कीस के हैं 

जो ख़ुद को बीस का ही मानते हैं 
हमारे सामने उन्नीस के हैं 

ज़रा बनती नहीं झूठों से "साजिद"
हमारे आंकड़े छत्तीस के हैं


2 comments

  • waaaaah !
    Bahut khooob !

    Nafis Parvez
  • Thanks

    Sajid Premi

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