By Geetanjali Sengar
रक्तबीज नामक राक्षस ने
जब पार्वती को ललकारा था,
तब माता ने अपने पति
शिव शम्भू को पुकारा था।
भोलेशंकर को माता की
ये पुकार रास ना आई थी,
तब शम्भू ने माता को
उनकी अथाह शक्ति याद दिलाई थी
“असहाय क्यों हो जाती हो,
जब भी संकट आता है?
क्यों एक नारी को संकट में
पुरुष ही बचाता है?”
“तुम भी उसी मिट्टी की हो,
जिस मिट्टी का मैं हूँ प्रिये!
बुझा दिए हैं तुमने
अपने नेत्रों के प्रज्वलित दिए...”
जब सुना माँ ने ऐसा
तब शक्ति रूप अवतार लिया,
बनकर चंडी माँ काली ने
दुष्टों का संहार किया।
क्रोध इतना बढ़ा
कि उसे ब्रह्माण्ड झेल न पाया था,
तब शम्भू महाकाल ने
अपना कर्त्तव्य निभाया था।
ऐसे ही सती रूप में माता
शिव का अपमान झेल न पायी थी,
तब माता ने पिता दक्ष के
यज्ञ कुण्ड में छलांग लगायी थी।
जिसको सती प्रथा बना दिया हमने,
वो माँ का शिव के लिए आदर था।
आदर को प्रथा बना देना,
उस शाश्वत प्रेम का अनादर था।
समझो तो सीख मिलेगी इससे,
न समझो तो बस पढ़ लेना
वैसे भी ऐसे ज्ञान से
आजकल किसी को क्या लेना देना...
इस जीवनरूपी गाड़ी के दो पहिये हैं
नर और नारी
एक भी पहिया डिगा अगर,
तो बिखर जाएगी सृष्टि सारी।
चलो एक-दूजे का पूरक बन
अपने कर्तव्य निभाएं हम
ऐसा हो आचरण हमारा,
कि समस्त प्रकृति हमें करे नमन।
