By Garima Tanwar
मन के होते रूप हज़ार
इसमें ही है शक्ति अपार
आओ जाने मन को मन से
खोल अपने मन के द्वार।
कभी तपे यह सूर्य सा तो
कभी चंद्रमा-सा शीतल
कभी जले यह अग्नि-सा तो
कभी हो ठंडा जैसे जल।
कभी लगे हिरनों सा चंचल
कभी बन जाए गंभीर
कभी दिखाए आतुरता तो
कभी गज़ब की रखता धीर।
कभी है तारों-सा उज्जवल
कभी काला रात-सा
कभी छुईमुई-सा सिकुड़ता
कभी फैले आकाश-सा।
कभी करे झरनों सी कल-कल
कभी दिखता नदी-सा शांत
कभी चाहे भीड़ सबकी
कभी फिर चाहे एकांत।
कभी ये बाँधे आशाएँ तो
कभी निराशा से उदास
कभी हो भारी पत्थरों-सा
कभी हल्का जैसे कपास।
कभी स्वार्थ से है भरा यह
कभी दानी कर्ण-सा
कभी धूमिल राख-सा यह
कभी चमके स्वर्णसा।
कभी है खुश हर हाल में तो
कभी हठ से है भरा
कभी मिट्टी-सा मलिन तो
कभी रत्नों-सा खरा।
कभी प्रेम से पूर्ण है यह
कभी रखता सबसे रोष
कभी हो सब से ही सहमत
कभी देखे सभी में दोष।
करते भ्रमण हम विश्व का
हैं शांति को खोजते
पर क्यों नहीं स्वयं अपने ही
मन को हैं टटोलते।
कर प्रयत्न यदि कर लें अडिग
मन हम चट्टान सा
मन को रखेगा सदा ही
ध्यान हमारे 'मान' का।