By Aniket Chaughule
कुछ रुक सा गया है
गले में दर्द बन कर,
निगल नहीं पा रहे
और उगल पाए इतना
खुदमे जोर नहीं है.
फिर कभी रो लेंगे,
आज फुर्सत नहीं है.
सांस है सीने में
पर चलते चलते कही
दम तोड़ बैठी है.
युः तोह हवा है बेवज़न
पर आज बोझ लग रही है.
फिर कभी रो लेंगे,
आज फुर्सत नहीं है.
हां भर आती है
आखो में आधी बूँद,
पर बाँध बन जाती है
टूट जाए भले,
खुलने की इजाज़त नहीं है.
फिर कभी रो लेंगे,
आज फुर्सत नहीं है.
अगर कुछ है तोह बस भगदड़,
चारो और शोर है,
कोई रुके तो दिखू मै
कोई सुने तो कहु मै,
मदत का हाथ मिल भी जाए
पकड़ने की हालत नहीं है.
फिर कभी रो लेंगे,
आज फुर्सत नहीं है.
छोड़ो खैर,
सवारी चल निकली है.
भरी नम आँखें,
मन में दबी बातें
लेकर कमर कास ली है.
गला घोट तोह दिया दर्दो का
पर उनके मुर्दों को ठिकाने लगाए,
इतनी अब हिम्मत नहीं है.
फिर कभी रो लेंगे,
आज फुर्सत नहीं है.