Ek Dost, Krishna – Delhi Poetry Slam

Ek Dost, Krishna

By Rishabh Pandey

सुना है, एक साल बहुत कुछ बदल कर आता है,
पिछले साल तक जो शख़्स सिर्फ़ एक दोस्त था मेरा,
इस साल वो दोस्त मेरा सिर्फ़ एक ही अपना शख़्स है।

कल तक मुझे जिनका ज़िक्र भी नहीं था,
बस अभी ही तो मैं उनके सामने आया था,
आज उनकी एक दिन आवाज़ ना सुने तो फ़िक्र होती है,
वो ख़ैरियत से तो हैं, बस ये जानने आया था।

अरसे से ढूंढ रहा था एक भाई को यारों में,
आप आ गए तो सारी खोज रुक गई है,
खून से बढ़कर भी कोई रिश्ता होता है क्या,
जानकर आज दोस्ती भी झुक गई है!

सुना था बचपन की दोस्ती उम्रदराज़ होती है,
पर उन्होंने मुझे परखने में कई साल ले लिए!
आप तो नए थे, मगर मेरे हर जवाब का कारण समझ लिया,
इसलिए हमने भी वापस अपने सवाल ले लिए!

अब आपसे ही तो सारी उम्मीदें बांध रखी हैं,
इसीलिए तो हर छोटी बात का बुरा लगता है।
शिकायतें हो सकती हैं, मगर नाराज़गी नहीं,
महफ़िल में एक आप ना हों तो सब अधूरा लगता है।

मैं अगर रहा, आपको हमेशा ख़ास बनाकर रखूंगा,
इस दोस्ती का उन्हें हर एहसास बताकर रखूंगा।
था एक दोस्त जो सड़क चलते मिल गया था,
ना जाने क्या रिश्ता था, काँटों में एक गुलाब खिल गया था।


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