Ek Aakhiri Khwahish – Delhi Poetry Slam

Ek Aakhiri Khwahish

By Shagun 

जैसे रोटी जल जाती है ज्यादा भुनाने पर
मेरे कंधे कुल्ले कमर कोहनी की चमड़ी भी जल जलकर उतर रही थी.....

एक आखरी ख्वाहिश

मैं तो बंद थी 9 महीने से एक जेलखाने में
जो मेरी जिंदगी का सबसे सुंदर वक्त था
ना कोई सोच ना विचार ना परेशानी
अभी तो मेरा दिमाग भी बंद था।

आई इस दुनिया में तो खुली आंखें
तरह-तरह के रंग देखने को मिले
मेरा जन्म एक स्त्री के रूप में हुआ था
सभी को मुझसे थे शिकवे गिले।

क्या दात दूं मैं उस मां की ममता की
जिसने मुझे अपने शरीर से सींचा था
दसवे ही दिन मेरे बाप ने
मुझे मेरी मां के पल्लू से खींचा था।

क्यों हुआ मेरे साथ ऐसा
क्यों मेरी सिर्फ इतनी ही जिंदगी थी
हे भगवान
क्या मैंने तेरी इतनी ही बंदगी की।

लपटे-लपटे हो रहा था तंदूर
जमा हुए लोग चार
मेरे दादा ने झोंक कर उस आग में
दीया मुझे मार।

लौट गए वो सब थूक कर
लेकिन मुझ में जान बाकी थी
कोई आएगा बचाने मुझे
मुझ मे एक आस बाकी थी।

जैसे रोटी जल जाती है भुनाने पर
मेरी चमड़ी भी जल जलकर उतर रही थी
क्या बाकी लड़कियों की जिंदगी भी
सिर्फ 10 दिन की ही इस कदर रही थी।

अंगारों से निकलता गर्म हवाओं का झोंका
मेरे हर अंग के खून को जला रहा था
अब मैं सोना चाहती थी मौत की गहरी नींद में
लेकिन मेरा अधमरा सा दिल मुझे जगा रहा था।

जिंदा जलने का कुछ और ही एहसास है
बाल नाखून आंखें सब जिंदा जल जाती हैं
अच्छा हुआ मार दिया एक लड़की को
वरना यह दुनिया बहुत मजाक बनाती हैं।

तड़प तड़प कर आखिरकार
मुंद गई मेरी आंखें
फिर अगले जन्म के चक्कर में
9 महीने की सलाखें।

सुन शगुन- एक आखरी ख्वाइश

अगर पढ़ लिखकर मैं इस लायक बन जाऊं
तो मैं बैंक वालों को एक सलाह दूंगी
दे दो ना मेरे दहेज के लिए भी कर्ज़ एक
आत्मनिर्भर होंगी तो खुद ही भर दूंगी।


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