By Dr Shraddha Nikunj Bhardwaj
जिस क्षण छूटे अहम् हृदय का, कितना निर्मल वो क्षण है
पर-सेवा में निज की निष्ठा सबसे श्रेष्ठ समर्पण है।
दीप प्रज्ज्वलन देवालय में करना क्या आवश्यक है
उसकी आभा से आलोकित इस सृष्टि का कण-कण है।
धूप, दीप, नैवेद्य, दक्षिणा अर्पित करना लघुता है
सत्य भावनाओं का अर्पण सबसे पावन अर्पण है।
जो सद्गुण से सज्जित उसको क्या लेना आभूषण से
सद् वाणी आभूषण मुख का, दान हस्त का कंकण है।
वही सबल है जो हर व्यक्ति के गुण का सम्मान करे
निज का मंडन, आत्म-प्रशंसा दुर्बलता का लक्षण है।
आडम्बर का वसन सत्य को आच्छादित ना कर पाऐ
बिम्ब सत्य का दिखता केवल, मानव-मन वो दर्पण है।
भोग लगाऐं क्या तुमको, तुम अन्नपूर्णा हो जग की
'श्रद्धा' के दो' अश्क' आपके
श्रीचरणों का तर्पण है।