By Dr. Sheetal Goyal
![]()
नए इरादों को अपने शस्त्र बनाकर,
नई उमंगों को प्रेरणास्रोत बनाकर,
सोई उम्मीदों को चिरनिद्रा से जगाकर,
सपनों के नए पंख लगाकर;
मैं उड़ना चाहती हूँ।
मैं जीना चाहती हूँ!!
इन वर्षों में जो ख़ुद से दूर हो गई थी,
अपने अस्तित्व को जो मैं भूल गई थी,
उन बिखरे पन्नों को समेटकर,
स्वयं की पुनर्रचना करना चाहती हूँ।
मैं जीना चाहती हूँ!!
सुख-दुख की उधेड़बुन से निकलकर,
हार-जीत को बहुत क्षीण मानकर,
निरंतर चलते रहने के ध्येय को अपनाकर,
जीवन को नया अर्थ देना चाहती हूँ।
मैं जीना चाहती हूँ!!
मित्रता-वैरी के नातों से उठकर,
ख़ुद को और दूसरों को भी क्षमा कर,
सिर्फ़ मानवता को एकमात्र रिश्ता मानकर,
मैं ज़िंदगी में नवरंग भरना चाहती हूँ।
मैं जीना चाहती हूँ!!
भूत से प्रेरणा लेकर अपना भविष्य संजोना चाहती हूँ,
अपनी क्षमताओं को फिर से उभारकर,
आत्मसाक्षात्कार के द्वारा
ऊर्जा का नव संचार करना चाहती हूँ।
मैं जीना चाहती हूँ!!
बड़ी से बड़ी बाधाओं से सीख लेकर,
पथ के काँटों को सुमन मारकर,
अकारण चिंताओं को दरकिनार करके,
मैं गगन को चूमना चाहती हूँ।
मैं जीना चाहती हूँ!!
क्या खोया क्या पाया,
इस हिसाब को तजकर,
मन में विश्वास का दीप जलाकर,
मैं एक-एक पल में कई युग बिताना चाहती हूँ।
मैं जीना चाहती हूँ!!
It’s a wonderful poem about the life’ dream to make something big.