"हे कृष्णा कहो न कब" – Delhi Poetry Slam

"हे कृष्णा कहो न कब"

By Dr. Radhika Kharbanda

 

 

हे कृष्णा कहो न कब
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एक पहेली उलझी सी इसको कैसे सुलझायुं मैं?
मन की गांठें बनती फिर फिर
पुन: पुन:  इसे क्यों न खोल पाउँ मैं?
क्या इसमें -2 कुछ मेरी मदद कर पाओगे तुम?
हे कृष्णा , हे कृष्णा कहो न कब आओगे तुम
हे कृष्णा कहो न कब आओगे तुम

जैसे तुमने अर्जुन को था मार्ग दिखाया,
पग पग पर भ्रमित हुआ,  वैसे उसे संसार समझाया!
कर्म भूमि से होके भ्रमित और बेजार,
बन अर्जुन तुम्हे मैं पुकारती इस बार!
क्या मेरे लिए -2 गीता के उपदेशों को फिर से दुहराओगे तुम?
हे  कान्हा  कहो न कब आओगे तुम?
हे गोपाला कहो न कब आओगे तुम?

इस पार से जो मैं कहती हूँ उस पार से क्या तुम सुनते हो?
इस पार से उस पार के दरम्यान,
क्या कभी एक झलक दिखलाओगे तुम?
क्या जीते जी कभी मेरी आवाज सुन पाओगे तुम
हे  गोविंदा ,  हे  द्वारकाधीश,  हे माधव कहो न कब आओगे तुम?
हे माधव कहो न कब आओगे तुम?

सुना है भक्ति मैं बड़ी जान होती है,
अब जान ही दें दूँ तब मान पiयोगे तुम?
रोम रोम पुकारता तुमको- रोम रोम पुकारता तुमको
मन के सूखे मरुस्थल पर कब रिमझिम सावन बरसाओगे तुम
हे घनश्याम, हे  देवकीनंदन,  हे मोहन  कहो न कब आओगे तुम?
हे मोहन  कहो न कब आओगे तुम?

घट घट की प्यासी तृष्णा को कब चेतना में धड़काओगे तुम?
इस जहाँ से उस जहाँ का सफर,
उस जहाँ से इस जहाँ का सफर,
इस जीवन मरण के चक्र से कब मुझे मुक्त करवाओगे तुम?
कब मुझे मोक्ष दिलवाओगे तुम?
हे कृष्णा कहो न कब आओगे तुम?
हे कृष्णा कहो न कब आओगे तुम?


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