By Dr. Nitesh Dhawan

सघन है तेरी विरह,
मैं मौन हूँ
तेरे बिना मैं क्या कहूँ
मैं कौन हूँ !
तू ही परिचय है मेरा
अस्तित्व भी
तू ही जननी है मेरी
व्यक्तित्व भी
अब तू नहीं, तेरे बिना
मैं शून्य हूँ
सघन है तेरी विरह
मैं मौन हूँ
तू ही है सर्वस्व मेरा
मान भी
तू ही जीवनदायिनी
वरदान भी
तेरे बिना मैं रह गया
अब गौण हूँ
सघन है तेरी विरह
मैं मौन हूँ
तू ही मेरी शक्ति है
और ज्योति भी
तू ही मेरी आस है
विश्वास भी
तू नहीं तो रह गया
बेमोल हूँ
सघन है तेरी विरह
मैं मौन हूँ .....।।