Dr. Balvinder Banga
कुछ बातें कभी पूरी नहीं होतीं,
जैसे तेरा मेरा साथ..
और वो एक कप चाय
जो अब भी अधूरी पड़ी है।
तेरे जाने के बाद भी
मैं उसी चायवाले ठेले पर जाता हूँ,
वही कप, वही स्टील की कुर्सी ..
बस अब तू नहीं बैठती सामने।
चाय अब भी वैसी ही बनती है
पर स्वाद में अब
तेरी बातों की मिठास नहीं रहती।
कभी तू बिना कुछ कहे मुस्कुरा देती थी,
और मैं बिना कुछ पूछे समझ जाता था।
अब खुद से सवाल करता हूँ,
और जवाबों में बस तेरी ख़ामोशी मिलती है।
कई बार चाय ठंडी हो जाती है
तेरी यादों में खोते-खोते...
और मैं घूंट-घूंट पीता हूँ
उस पल को जो कभी था... और अब बस याद है।
अगर कभी लौट आए वो एक शाम,
तो मैं फिर से कहूँगा
बैठ जा, चाय ठंडी हो रही है...
और शायद, इस बार कहानी पूरी हो जाए।