By Dr Amritpal Kaur

जहां जहां पड़े चरण
तथागत गौतम बुद्ध के,
हरीतिमा-सा हो उठा
वह मार्ग वसुंधरा का
प्रेम,
करूणा,
मैत्री के भाव से
प्रज्ञा,
श्रेष्ठा,
शील के उल्लास से
सुधार,
बदलाव,
समानता,
न्याय की पुकार से
मन के आत्म-विकास,
स्व-शासन की लौ से
तर्क,
ज्ञान,
बुद्धिमता की आवश्यकता से
अनात्म और अनित्यता के सत्य से,
परिवर्तन की निरंतरता के सिद्धांत से
दुःख की पराजय से,
सुख के आगमन के अनुभव से
चलो चलते हैं सभी
बसा कर हृदयों में अपने,
बुद्ध के चरणों की सुकुमारता का स्पर्श,
ओढ़ कर
उनकी शिक्षाओं का चरित्र,
न्याय-माला की फिर से
एक सभ्यता पिरोने!