By Divya Soni
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करूं विवाह,
पीली हो जाऊं
हो तुम्हारी,
तुमको पाऊं।
बोलो प्रीत मेरे-पर क्या तुम,
मुझे मेरा होने दोगे?
मेरी उड़ानों के बीज,
आंगन में अपने बोने दोगे?
कहो रात्रि जो तुम्हारी,
केशो तले सजाऊंगी,
क्या तुम्हे अपनी दौड़ में संग दौड़ता पाऊंगी?
आंखों के नीर से सीचूंगी प्रेम
हृदय तुम्हारा न नीरस होगा,
जब धरूंगी ध्यान स्वयं पर,
क्या तुम्मे धीरज होगा?
चली तुम्हारे पाछे-पाछे
अग्नि के चहु ओर,
कहो भरोसा कर चल दोगे,
ले जाऊं जिस छोर?
तुम्हे बिराजा मांग में है,
पूर्ण धारण भी करूंगी,
हृदय से झट्ठर तक स्वामिनी बन,
कापूंगी ना दृढ़ रहूंगी,
मुझे छू कर निकलेगी विपदा पहले,
हटूंगी ना,
लड़ूंगी!
पर क्या तुम पीछे चल पाओगे?
चुन लिया गर खुदको कभी मैने,
इस बात को अपनाओगे हाथ थाम मेरा,
या मुझ ही से लड़ जाओगे?
कभी पाया तुमने गर खुदको,
ना मेरी प्रार्थमिकता, तो क्या करोगे?
उस इक क्षण में मुझे,
धारा पर तो नही ला धरोगे?
मुझे भावनाओं से पकड़ कर,
प्रेम से मेरी चोटी गूंथ दोगे?
या मेरे केश खोल,
मेरे पंख बन,
मेरे साथ उड़ोगे?
या मेरे केश खोल,
मेरे पंख बन,
मेरे साथ उड़ोगे?
Mesmerizing