By Divya Mathur
कलियां चटक कर खिल गईं
बसंत अब छाने लगा
नभ में प्यारी लाली छाई
प्रभात हर्षाने लगा
चिड़िया चहकने लगी पेड़ पर
बीती रात पुष्प दल फूले
उनके ऊपर भ्रमर थे झूले
बसंत खिलखिलाने लगा
पतझर ने विदाई ली धरा से
हवा सुखद बहने लगी
रात छोटी हो गई
मन उपवन महकने लगा
पराग मय हो फूल सारे
प्रकृति रस बरसाने लगी
चेतना जो जड़ पड़ी थी
प्रेमगीत गाने लगी।