मन रे पागल पंछी – Delhi Poetry Slam

मन रे पागल पंछी

By Divya Bhatnagar

 

मन रे पागल पंछी दूर क्षितिज में उड़ना चाहे

चलो आज तोड़ पिंजरे को चाँद सैर पे निकल जायें

बस चाँद पर जाना है दस कदम बढ़ाना है

पहला कदम बढ़ाया पति की चाय याद आयी

दूजा कदम बढ़ाया बेटे ने आवाज़ लगाई

तीजा कदम बढ़ाया बेटी की सुबकी आई

चौथा कदम बढ़ाया माँ बाप की खामोशी

पाँचवां कदम बढ़ाया भाई -बहन की गर्मजोशी

छठा कदम बढ़ाया सुसराल का खाना

सातवाँ कदम बढ़ाया मेहमानों का आना

आठवां कदम बढ़ाया वो नहाना वो खाना

नोंवा कदम बढ़ाया वो आना वो जाना

दसवाँ कदम बढ़ाया सबके उतरे चेहरे

बस हो गये उलटे कदम

चल पड़ी धरती की ओर

जब धरती पर ही मेरे चाँद तारे

क्यों ये कदम बढ़ाऊँ

क्यों गगन में उड़ जाऊँ

धरती के चाँद तारे आग़ोश में भर के

चलूँ धरती की ओर

संग अपने चाँद तारे चलूँ गगन से धरा की ओर

 

 


3 comments

  • Dear sister
    Yu hi likhte rahna.
    Keep up doing good work dear.

    Alka Bhatnagar
  • Bahut badhiya. Aur bhi try karte rahna hai likhne ke liye.

    Anshu bhatnagar
  • Man ko Chu lene wali kavita 👏👏

    Bahut hi sundar kavita 👏👏👏👏👏

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