By Divya Bhatnagar

मन रे पागल पंछी दूर क्षितिज में उड़ना चाहे
चलो आज तोड़ पिंजरे को चाँद सैर पे निकल जायें
बस चाँद पर जाना है दस कदम बढ़ाना है
पहला कदम बढ़ाया पति की चाय याद आयी
दूजा कदम बढ़ाया बेटे ने आवाज़ लगाई
तीजा कदम बढ़ाया बेटी की सुबकी आई
चौथा कदम बढ़ाया माँ बाप की खामोशी
पाँचवां कदम बढ़ाया भाई -बहन की गर्मजोशी
छठा कदम बढ़ाया सुसराल का खाना
सातवाँ कदम बढ़ाया मेहमानों का आना
आठवां कदम बढ़ाया वो नहाना वो खाना
नोंवा कदम बढ़ाया वो आना वो जाना
दसवाँ कदम बढ़ाया सबके उतरे चेहरे
बस हो गये उलटे कदम
चल पड़ी धरती की ओर
जब धरती पर ही मेरे चाँद तारे
क्यों ये कदम बढ़ाऊँ
क्यों गगन में उड़ जाऊँ
धरती के चाँद तारे आग़ोश में भर के
चलूँ धरती की ओर
संग अपने चाँद तारे चलूँ गगन से धरा की ओर
Dear sister
Yu hi likhte rahna.
Keep up doing good work dear.
Bahut badhiya. Aur bhi try karte rahna hai likhne ke liye.
Man ko Chu lene wali kavita 👏👏