By Daxesh Patel
बूंद आसमां की आंखों से बारिश रूप है गिरती,
मुझे सिंचता पानी तू है गदगद अवनी कहती;
पहली बार है जब तू आती छोटे बच्चों को भी भाती;
बड़े भी देख तुझे खुश होते चारों तरफ खुशियां है छाती।
जहां जिधर जितनी तू गिरती मिट्टी को गीली करती;
पाकर कोमल स्पर्श तुम्हारा हर कण में सुवास फैलाती।
शाम सुबह की पल में जिसने वृक्ष की शोभा बढ़ाई;
सुंदरता सृष्टि में भारती ओस की बूंदे छाई।
चहक पंछी की, कर्ण मधुर रव, मीठा संगीत बहता;
सूर भिन्न है, भिन्न है भाषा, फिर भी मन को मस्त बनाता।
हरा रंग धरती पे छाता प्रकाशित हरियाली होती;
वर्षा ऋतु है जबसे आती मुस्कुराहट पेड़ों पे लाती।
मोर है नाचे तव रग रग में आवाज तेरी है नभ में गूंजे;
स्वरूप तेरा निराला दिखता, किसान तुझे देख मस्ती में झूमे।
नदियों की जननी है माने संस्कृति भारत देश की;
बहार खिलती उन नदियों में, उछलकूद करती जाती।
सातत्यता से धरती मां की कृतज्ञता अर्पण करती;
प्यास बुझाती हर व्यक्ति की अपेक्षा थैंक यू की ना करती।
प्रकृति की विविधता में महत्त्वपूर्ण है तेरा स्थान;
ईश्वर की अनमोल विभूति तुझको मेरा प्रणाम।