By Diksha Laswai
सपने जिम्मेदारियों के आगे झुक जाते हैं
उनका पीछा करते करते अचानक ये कदम भी आप रुक जाते हैं ,
जीता था वो शक्स जिसकी उम्मीद में
टूटती है वो उम्मीद तो ख़्वाब भी सब चूर हो जाते हैं।
बिखर जाता है जुड़कर फिर से
जब बुरी किस्मत उस पर हक़ जताती है ,
कमाया खुदपर खर्च करने के लिए
खत्म हो जाता है महीने तक, जब भूख सताती है ।
मायूस चेहरे दिखते है मां बाप के
जब उनकी उम्मीदों से ही हार जाते हैं ,
कोसते है खुदको रात भर
हिम्मत बांधने के पैंतरे भी सब बेकार जाते हैं ।
अपने - पराय, दोस्त - परिवार , कोई नहीं पूछता
वो सबके द्वारा ठुकराए जाते हैं ,
हो कुछ तो सब अपने, और 'गर न हो कुछ हाथ
तो सिर्फ़ तानों के जाल ही बिछाए जाते हैं ।
जिम्मेदारियों के बोझ से कंधे झुक गए
सहानुभूति सब देते हैं , बताओ ज़रा कितने बोझदार उठाए जाते हैं ,
आंखें भी सूख जाती है, जब गुस्से के अंगारे जलते हैं
मन मर्ज़ी से मिटता कोई न ,
सब जिम्मेदारियों द्वारा मिटाए जाते हैं ।
खुदकी राहें छोड़ दी, भेड़ चाल में चल दिए
उस राह एक एक कदम गिनाए जाते हैं ,
कोशिश पूरी की तुमने, ये कोई न कहेगा
तुम हारे कितनी बार, सौ बार बताए जाते हैं ।
आधा कर दिया खुदको सबको पूरा करने के लिए
ज़रूरत पड़ी तुम्हें जब किसकी
तो सब कदम पीछे हटाते जाते हैं ,
घोट दिया गला खुदका इस किस्मत ने
जिम्मेदारियां हैं जनाब ,
इसे निभाने वाले अक्सर मारे जाते हैं ।