By Dhruwa Shankar Prasad

सुबह मिट्ठू, दोपहर मिट्ठू, शाम मिट्ठू, रात मिट्ठू
मार्केट से लौटा तब मिट्ठू
स्कूल से लौटा तब मिट्ठू
इतना सुना, इतना सुना, इतना सुना
कि एक दिन बउआ के लिए खरीद लाया मिट्ठू
साथ में एक पिंजड़ा
मिट्ठू को पिंजड़े में रखना मुझे अच्छा नहीं लगता है
उसे खुश न रख पाने का ख्याल मुझे खलता है
पर बाल सुलभ ज़िद ने मुझे बदल दिया
मगर एक बात ने बाद में मुझे कुछ चैन दे दिया
कब मिट्ठू को खाना देना है
कब मिट्ठू को पानी देना है
कब मिट्ठू को पिंजड़े से निकालकर घर में उड़ने देना है
कब मिट्ठू को छत पर ले जाना है
कब मिट्ठू को मम्मी से नहलवाना है
कब मिट्ठू का पिंजड़ा मम्मी से साफ करवाना है...
बउआ ने सब संभाल रखा है
मिट्ठू का बउआ के साथ एक अलग नाता है
दोनों को एक-दूसरे के बिना चैन नहीं आता है
एक बार की बात है
सपरिवार धनबाद गया था इलाज के सिलसिले में
बहुत देर होने पर मिट्ठू की याद में
आंसू भर आए थे बउआ की आंख में
डबडबाती आंखों से उसने पूछा था —
"मिट्ठू ने पानी पिया होगा पापा?
मिट्ठू ने खाना खाया होगा पापा?
अगर आज हम लोग यहां रुक गए तो मिट्ठू का क्या होगा पापा?"
रात में जब लौटा
ऊपर वाली आंटी से बउआ तुरंत मिट्ठू मांग लाया
मालूम हुआ
दिनभर बोलते रहने वाला यह पंछी
दिन भर चुप था!
खाना उसे मिला था
पानी उसे मिला था
पर शायद कुछ था जो उसे नहीं मिला था
देखते ही बउआ को वो जोर जोर से बोलने लगा
खुशी का खुला इजहार करने लगा
बउआ को देखकर मिट्ठू खुश था!
मिट्ठू को देखकर बउआ खुश था!
खुश दोनों को देखकर मैं खुश था!