आज – Delhi Poetry Slam

आज

By Dhiraj Bellani

आज में हूँ जीता
मैं आज में हूँ जीता
कल की सोचे भागड़ बिल्ला
आज मैं हूँ चीता

चीते की ताक है स्थिर
जिंदा दिल्ली का हुआ है असर
सिगरेट विगरेट दारू वारु
कुछ नही मैं पीता
उलझनों की गलीयों में
यार की टपरी ने दिल जीता

यारों का यार था मैं
फिर दोस्ती का साथ छूटा
ऐसा लगा आसमान टूटा
पैरों तले जमीन फिसली
प्यार का बर्माँड़ फूटा
एकांत के अंतरिक्ष में पीछे अकेला मैं छूटा

यार तो एकांत में भी है
खुदा में खुद में
फिजा में रुत में
फिर भी मन क्यूँ था रूठा

रूठे मन की थी एक ही हसरत
कुछ अपनों के साथ फुरसत
कुछ अकेले में इबादत
अब तो पूरी है इंसानी फितरत

आज में है जीना
मुझे आज में है जीना
कल तो कल भी कल नही रहेगा
आज शुक्रगुजारी से भरा है सीना


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