समय – Delhi Poetry Slam

समय

By Devashish Vashisth

समय
ये गुज़र जाए जैसे तीर है
नसियत दे जैस कोई पीर है
समय
कभी खाईशे मिटा देता है
कभी गमो को भुला देता है
कभी जीवन को पनाह देता है
और कभी सासो को थमा देता है
समय
ना कोई इससे दूर है ना करीब
सबसे ये ओझल है , चाहे हीर या फ़कीर
समय
कभी शाम का सुरूर बन कर आता है
और शामियाने को मेफिल बना जाता हैं
और जब खुद बीत जाए तो हमे ही कसूरवार ठेरता है
समय
ये शैतान की मशाल है
या इश्वर की ढाल है
ये एक पहेली है
एक अनसुना सवाल है
इसकी सरहदे हमारी कल्पनाओं से बाहर है
समय
क्या ये सिर्फ एक विचार है
या ये दो धारी कटार है
क्या ये प्रकर्ती का गुलाम है
या विनाश का पैगाम है


Leave a comment