By Deeptie Raj

मैं भारत माता की स्वतंत्रता को समझना चाहती हूं ।
लेकिन; ना तो मुझे भारत माता समझ में आती है,
और ना ही उसकी स्वतंत्रता!
बाहर बन रहे मकानों में, बोझा ढोने वाली
वो "लेबर औरत" समझ में आती है मुझे ।
नंगे पाँव काम करते हुए
उस औरत के ख्वाबों की फटी एड़िया भी
समझ में आती है मुझे,
लेकिन भारत माता समझ में नहीं आती मुझे।
अरे याद आया उसकी चार बरस की छोटी सी बच्ची,
जो हाल ही में, अनाचार की भेंट चढ़ गई ।
"कूड़े और कचरे के ढेर" में
अपने सपने तलाशती हुई,
उस बच्ची की आंखें समझ में आती है मुझे।
किसी के जूठन और उतरन के प्रति,
उसकी श्रद्धा और आसक्ति समझ में आती है मुझे।
उसकी कुचली हुई मासूमियत समझ में आती है मुझे
लेकिन; भारत माता...
समझ में नहीं आती मुझे ?
मैली-कुचैली अंधेरी गलियों में...
परी से चमचमाती हुई
वह "बाजारू औरत" समझ में आती है मुझे
काजल से ढकी गई आंखों की बनावटी चमक और उसके बदन से आती वह मोगरे की हल्की सी महक !!
मेकअप से छुपाई गई आंखों की रिक्तता और
कई शरीरों को तृप्त कर देने वाली ऊर्जा की तीव्रता !!
उसकी संवेदना, उसके सिद्धांत ।
उसके अंगड़ाई, उसकी पहचान समझ में आती है मुझे
लेकिन भारत माता समझ में नहीं आती मुझे!
भारत माता समझ में नहीं आती मुझे