By Deepika Choudhary
वो छटपटाहट
अब भी महसूस करती हूं मैं,
वो आज़ादी की चाह अब भी मेरे मन में है
क्या हुआ अगर काट दिए गए हैं पंख मेरे,
मगर मेरे हौंसले अब भी बुलंद हैं
क्या हुआ अगर हिम्मत टूट गयी,
पर मैं अभी टूटी नहीं
क्या हुआ अगर छोटी उमर में व्याह दिया गया मुझे
क्योंकि मेरे माँ बाप गरीब थे,
पर यह मेरे सपनों को तोड़ नहीं सकता
क्या हुआ अगर चूल्हा-चौका का काम पड़ गया मुझे
मगर बचपन अभी छूटा नहीं है,
क्या हुआ अगर मैं खेल नहीं सकती,
क्योंकि लड़की हूं और ब्याही भी
फिर चाहे मेरी उमर छोटी ही है,
पर अपनी बेटी के लिए सपने तो बुन सकती हूं
क्या हुआ अगर कोई मेरा दर्द, मेरे सपने, मेरी उमंग नहीं समझता,
बस इतना काफी है कि मैं खुद के अस्तित्व को समझ सकती हूं !